ट्रेन की देरी से परेशान महिला ने बुना रेल डिले स्कार्फ, लेट होने वाले समय को दिए अलग-अलग रंग
जर्मनी. ट्रेन में सफर करना और सफर में समय बिताने के लिए महिलाओं का बुनाई करना। इन दोनों बातों में कुछ अनोखा नहीं है। भारत में अक्सर ऐसा होता है, लेकिन जर्मनी के म्यूनिख में रहने वाली 55 साल की क्लाउडिया वेबर ने ट्रेन के सफर में रोज होने वाली पांच-सात मिनट की देरी का समय बुनाई में लगाकर एक स्कार्फ बनाया।
स्कार्फ की तस्वीर उनकी बेटी सारा ने सोशल मीडिया पर डाल दी। जब लोगों को पता चला कि यह स्कार्फ ‘समय’ की पहचान है तो उसकी नीलामी के लिए लोगों ने बोलियां लगानी शुरू कर दी। आखिर में यह स्कार्फ 7 हजार 500 यूरो यानी करीब 6 लाख रुपए में बिक गया। नीलामी की रकम रेलवे स्टेशन पर वेट करने वाले यात्रियों की मदद करने के लिए खर्च की जाएगी।
क्लाउडिया बावेरियन कंट्रीसाइड के छोटे से कस्बे से म्यूनिख के बीच करीब दो महीने तक रोजाना सफर करती रहीं। कारण वहां उनके घर में मरम्मत का काम चल रहा था। 40 मिनट के सफर में उन्हें आने-जाने के लिए दो घंटे का वक्त लग रहा था। इसके अलावा कभी-कभी उन्हें ट्रेन की देरी का शिकार होना पड़ता था। इस देरी से उनके मन में एक विचार आया। उन्होंने देरी के इस समय का सही उपयोग करते हुए स्कार्फ बुनना शुरू कर दिया।
हर रोज घर आने के बाद वह स्कार्फ में दो लाइन बुनती थीं। जिस दिन ट्रेन पांच मिनट से कम लेट होती थी, उस दिन क्लाउडिया स्लेटी रंग के ऊन का प्रयोग करती थीं। आधे घंटे तक की देरी होने पर गुलाबी और इससे ज्यादा की देर पर लाल रंग के ऊन का इस्तेमाल किया। जिस दिन ट्रेन दोनों तरफ से लेट होती थी, उस दिन भी वह लाल ऊन का इस्तेमाल करती थीं। ट्रेन समय से होने पर सफेद ऊन से बुना। इस स्कार्फ को ‘रेल डिले स्कार्फ’ नाम दिया गया है।
क्लाउडिया ने स्कार्फ बुनने की बात अपनी बेटी सारा को बताई। उसने मां के बनाए स्कार्फ की तस्वीर सोशल मीडिया पर पोस्ट की। वहां इसे 23 हजार से ज्यादा लोगों ने लाइक किया। लोगों की इस प्रतिक्रिया से उत्साहित होकर सारा को इसे बेचने का विचार आया ताकि उससे मिलने वाली रकम का सही इस्तेमाल हो सके।
सारा ने इस बारे में मां से बात की। मां ने इस नेकख्याली को मंजूरी दे दी। आखिरकार यह स्कार्फ 6 लाख रुपए में बिक गया।नीलामी की रकम स्टेशन पर वेटिंग करने वाले यात्रियों पर खर्च होगी
सारा का कहना है कि लोगों को लगता है कि जर्मनी में ट्रेन कभी लेट नहीं होती। यह सच नहीं है। दरअसल, मैं खुश इसलिए हूं कि लोगों ने इस स्कार्फ को इतना पसंद किया। अब मां की इच्छा के मुताबिक इससे मिली रकम को बावेरियन के रेलवे स्टेशन पर वेटिंग करने वालों की मदद में इस्तेमाल किया जाएगा।
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Source: bhaskar international story