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इन्हें बुर्के से आजादी, मेकअप और स्कूल चाहिए, तालिबान नहीं



राहिमा जामी अफगानिस्तान की सांसद हैं। 1996 में वे एक स्कूल चलाती थीं। मुल्क में तालिबानियों की हुकूमत थी। ऐसे में दबाव के चलते उन्हें घर बिठा दिया गया। उनसे कहा गया कि अब वे जब घर से बाहर निकलें तो घुटने तक का बुर्का पहनकर निकलें। एक दिन बाजार में जब पैर खुले दिखाई दिए तो धार्मिक पुलिस ने उन्हें घोड़े को मारने वाले चाबुक से पीटा। उनका खड़ा हो पाना भी मुश्किल हो गया था। जब तालिबानी सत्ता से बाहर हुए तो जामी फिर से आगे बढ़ी और चुनाव लड़ा।

यह कहानी सिर्फ जामी की नहीं है।अफगानिस्तान में आज लाखों महिलाएं आजादी की जिंदगी जी रही हैं लेकिन अब उनकी मुश्किलें बढ़ने की आशंका है। दरअसल यहां करीब 17 साल से चल रहे संघर्ष को खत्म करने के लिए अमेरिका और तालिबान एक ऐसे शांति समझौते पर बात कर रहे हैं जिसमें तालिबान की वापसी हो सकती है। ऐसे में पहली बार अफगानिस्तान में 700 से ज्यादा महिलाएं इसके विरोध में खड़ी हो गई हैं। खूंखार तालिबानियों के खिलाफ खड़े होने को दुनियाभर में बड़ी हिम्मत की बात मानी जा रही है।

उनका कहना है कि हमें भी शांति चाहिए लेकिन अपने अधिकारों की कीमत पर नहीं। आज अफगानिस्तान में महिलाओं को मेकअप करने की आजादी है, वे बिना बुर्का बाहर काम करने जाती हैं, उनकी बच्चियां स्कूल जाती हैं। जबकि तालिबानियों के राज में उनके सख्त कानून का पालन करना पड़ता था। अफगानी राष्ट्रपति अशरफ गनी के एक कार्यक्रम से पहले उनसे मिलने पहुंची 48 वर्षीय नरगिस कुर्बानी कहती हैं कि आप हत्यारों को जेल में डालिए। उनके साथ शांति की बातचीत मत करिए। वे कहती हैं कि 1997 में मेरे पति को तालिबानियों ने मार दिया था। उन्होंने मेरे बेटे पर भी हमला किया और उसे घायल कर दिया था।

इस कार्यक्रम में 34 प्रांतों से 700 से ज्यादा महिलाएं आईं और उन्होंने राष्ट्रपति के सामने अपनी बात रखी। इन महिलाओं ने मेकअप किया हुआ था और कुछ के बाल भी नहीं ढंके थे, जो पहले बड़ी गलती मानी जाती थी। ये महिलाएं उस वीडियो को खूब फैला रही हैं जिसमें तालिबान के जमाने से पहले महिलाएं फैशनेबल कपड़ों में आजादी के साथ घूमती थीं। अफगानिस्तान की फर्स्ट लेडी रुला गनी भी इन महिलाओं के साथ हैं। वे कहती हैं कि जब इतने लोग एक साथ खड़े हैं तो महिलाओं को खुलकर अपनी बात रखनी चाहिए। गौरतलब है किइस शांति वार्ता के सही परिणाम आते हैं तो अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना और दूसरी विदेशी सेना अगले तीन से पांच साल में चली जाएगी। तालिबान अभी अफगान सरकार से बातचीत के लिए तैयार नहीं है।

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Source: bhaskar international story

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