Uncategorized

इराक युद्ध में हिंसा देख सैन्य नर्स से जैन साध्वी बनीं टैमी, मानव तस्करी रोकने के लिए काम कर रहीं



वॉशिंगटन. टैमी हर्बेस्टर जैन साध्वी बनने वाली पहली अमेरिकी महिला हैं। कैथोलिक परिवार में उनका जन्म हुआ था। 2008 में आचार्य श्री योगीश सेे दीक्षा लेने के बाद वे साध्वी सिद्धाली श्री बन गईं। मानव तस्करी रोकना उनके जीवन के सबसे बड़े लक्ष्यों में से एक है। तस्करों से छुड़ाए लोगों को फिर समाज में लाने के लिए वे काम कर रही हैं। इसके लिए वे अमेरिकी पुलिस को भी ट्रेनिंग दे रही हैं।पढ़िए, जैन साध्वी बनने की उनकी कहानी टैमी हर्बेस्टर की ही जुबानी…

“बात 2005 की है। मैं अमेरिकी सेना में बतौर नर्स इराक में काम कर रही थी। मेरा काम घायल अमेरिकी सैनिकों का इलाज करना था। मैंने कई सैनिकों को अपने अंग खोते और मरते हुए देखा। एक दिन मेरी बटालियन काफिले के साथ शिविर में लौट रही थी। अचानक सड़क किनारे धमाका हुआ। सब लहूलुहान हो गए। एक सैनिक की जान चली गई। मैं काफिले में नहीं थी। अगर होती तो उसे बचाने की पूरी कोशिश करती। उस सैनिक के अंतिम संस्कार में अपने साथी सैनिकों के साथ खड़े हुए मैं पीड़ा के चरम पर थी। उस दिन एक नए सच से मेरा सामना हुआ था। अहिंसा का महत्व समझ में आया था।”

मौत इंसान के निष्ठुर बना देती है
“मैंने महसूस किया था कि हिंसा बहुत वीभत्स और कठोर है। यह मेरे मन को भी निष्ठुर बना रही है। मुझे लगा कि हिंसा और मौत का इतना आम हो जाना मानवता की सबसे बड़ी बीमारी है। इराक में मैंने बेकसूर बच्चों, महिलाओं, युवकों और वृद्धों की लाशों के बीच जिंदा लाशों को भोजन ढूंढ़ते हुए देखा। इन हालात ने बचपन से मन में उठ रहे कुछ सवालों की बेचैनी को और बढ़ा दिया था। मसलन, मैं कौन हूं? भगवान कौन है? सत्य क्या है? मेरी मां की मौत इतनी जल्दी क्यों हो गई? मेरे पिता से मेरी बनती क्यों नहीं?”

जवाब ढूंढने के लिए अध्यात्मिकलोगों से जुड़ी
“इन सवालों के उत्तर पाने के लिए मैं बचपन में चर्च में सेविका बनी थी। लेकिन सीनियर स्कूल में आते-आते मुझे महसूस होने लगा था कि इस तरह तो जवाब नहीं मिलेंगे। फिर कई आध्यात्मिक लोगों से मिली। एक मित्र ने आचार्य श्री योगीश से मिलवाया। उनसे मिले चार महीने ही हुए थे कि मुझे इराक युद्ध में नर्स के तौर पर जाना पड़ा। इराक में अपनी 16 महीने की ड्यूटी पूरी कर जब मैं अमेरिका लौटी तो कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में बैचलर इन कम्युनिकेशन काेर्स में दाखिला ले लिया। साथ ही विचार, आचरण और वाणी में मैंने अहिंसा का अभ्यास शुरू किया। शाकाहार अपना लिया। 24 की उम्र में मैंने दीक्षा ले ली। आचार्य श्री योगीश से मुझे साध्वी सिद्धाली श्री नाम मिला। अभी हम लोग अहिंसा और मानव तस्करी जैसे विषयों पर डॉक्यूमेंट्री भी बना रहे हैं। आज हम शायद पहले ऐसे जैन भिक्षु हैं, जो मानव तस्करी रोकने की दिशा में काम कर रहे हैं।”

अहिंसा की राह पर बढ़ने की कहानी
2008 में सिद्धाली श्री ने आचार्य श्री याेगीश से दीक्षा ली थी। आज वे अमेरिका में डैलस के पास स्थित 200 एकड़ के आध्यात्मिक रिट्रीट सेंटर, सिद्धायतन तीर्थ में आध्यात्मिक निदेशक हैं। वे लोगों को योग और अध्यात्म के जरिए अहिंसा के मार्ग पर बढ़ने के लिए प्रशिक्षित कर रही हैं।

“जब पहली बार मैं आचार्य श्री योगीश से मिली तो मैं उनके सामने एक विद्यार्थी की तरह बैठी थी। मैंने उनसे कहा कि मुझे नहीं पता कि मैं यहां क्यों आई हूं, पर शायद नियति को यहीं मंजूर था। आचार्य श्री ने मुझसे कहा कि जब छात्र तैयार होता है तो गुरु स्वयं उसके सामने आ जाते हैं। आज जब मैं उस मुलाकात के बारे में सोचती हूं तो मेरे मन में आता है कि काश मैं उनसे पूछने के लिए प्रश्न पहले से तैयार कर पाती। क्योंकि उनके सामने आने के बाद ऐसा महूसस हुआ कि जैसे कोई प्रश्न बचा ही न हो। फिर भी मुझे याद है कि मैंने पूछा था कि क्या इस जीवन में मुझे मोक्ष मिल पाएगा? क्या मैं खुद को जान पाऊंगी? क्या मैं दूसरों को कुछ सिखा पाऊंगी?”

“मैं जीवन की नई शुरुआत करना चाहती थी और सेना की अपनी ड्यूटी खत्म होने का इंतजार करने लगी थी। मैंने जाना कि हिंसा को सिर्फ वही बढ़ावा दे सकता है, जो हिंसा के परिणामों को नहीं जानता हो। जब मैंने जैन धर्म के दशवैकालिक जैसे ग्रंथों को पढ़ना शुरू किया ताे महसूस हुआ कि अब तर्क मेरे काबू में आने लगे। मेरे प्रश्नों के उत्तर खुद-ब-खुद मिलने लगे हैं। जैन धर्म के ग्रंथों को पढ़ते हुए मैंने जाना कि ईश्वर का अलग से कोई अस्तित्व नहीं है। वो हमारे अंदर ही है। हर कोई सही दिशा में सर्वोच्च प्रयास करके देवत्व प्राप्त कर सकता है।”

‘लगा जीवन का उद्देश्य मिल गया’
“इराक में 21 वर्ष की उम्र में मैंने युद्ध और हिंसा का सबसे भयानक रूप देखा था। एक बार मैंने वहां से आचार्य श्री योगीश को फोन किया। मैंने उनसे पूछा दीक्षा कैसे ली जा सकती है? क्या मैं साध्वी बन सकती हूं? उन्होंने कहा था कि संत का जीवन कठोर होता है, ठीक वैसे ही जैसे सेना में आपका जीवन कठोर है। संतत्व का प्रशिक्षण भी सेना की ही तरह स्वयं को तपाने वाला है। यहां भी कड़े अनुशासन को आप स्वेच्छा से अपनाते हैं। जो दिया जाता है वो खाते हैं। जहां जगह मिलती है वहां सोते हैं। यहां भी जीवन एक अलग धारा में बहता है। उनकी बातों में मुझे आनंद की राह नजर आ रही थी। मुझे लगने लगा था जीवन का उद्देश्य मिल गया है।

दीक्षा में भारतीय परंपरा से तैयार किया गया
“इस पर उन्होंने कहा था- दूसरों को सिखाने से पहले खुद सीखना जरूरी है। फिर जिस दिन मेरी दीक्षा हो रही थी, उस दिन भारतीय परंपरा से मुझे तैयार किया गया। हाथों में मेहंदी लगाई गई, चुनरी पहनाई गई। आचार्य श्री योगीश ने मुझे सिद्घाली श्री नाम दिया। उन्होंने इस नाम का मतलब बताया-वो जो आजाद आत्माओं में सबसे प्रकाशमान हो। उन्होंने कहा था- इतिहास में कभी किसी काे यह नाम नहीं दिया गया है। मैंने यह नाम खास तौर पर टैमी के लिए चुना है। दीक्षा के दिन मैंने जाना कि सभी लोग दुनिया को बदलना चाहते हैं, पर कोई खुद को बदलना नहीं चाहता। मेरी नजरों में दीक्षा का मतलब है- अाध्यात्मिक मार्ग पर आगे बढ़ने की प्रतिज्ञा। यह अपने आप को पूरी तरह से बदलने की इच्छा के बिना नहीं आ सकती।”

शिष्या चान्दना ने प्रभावित किया
“मुझे जैनधर्म के 24वें तीर्थंकर भगवान महावीर की शिष्या चान्दना ने काफी प्रभावित किया। हजारों वर्ष पहले उन्होंने राजाओं के वेश्यालयों में जाकर सेक्स वर्कर्स को मुक्त कराया था। चान्दना ने इन महिलाओं को अहसास कराया था कि आपका अस्तित्व आपके शरीर तक सीमित नहीं है। बाद में इन सेक्स वर्कर्स ने जैन धर्म अपनाने की इच्छा जताई। भगवान महावीर ने ऐसी करीब 30 हजार पीड़ितों को अपनी शरण में लेकर मुख्यधारा में लाने का पवित्र काम किया था। आज भी दुनियाभर में 3 करोड़ से ज्यादा सेक्स वर्कर्स दासियों जैसा जीवन जी रही हैं। इसीलिए हमारा आश्रम सिद्धायतन मानव तस्करी के खिलाफ काम कर रहा है।”

मानव तस्करी पर डॉक्यूमेंट्री बनाई
“हमने इस विषय पर ‘स्टॉपिंग ट्रैफिक’ नाम की डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनाई है। ये मानव तस्करी रोकने में भूमिका निभाने वाले लोगों की कहानी है। हम ट्रैफिकिंग रोकने के लिए पुलिस को ट्रेनिंग दे रहे हैं। सिद्धायतन में हम तस्करों से छुड़ाए गए लोगों की काउंसलिंग करते हैं। जैन धर्म के सिद्धांतों के माध्यम से इन्हें मुख्यधारा में अाने के लिए प्रेरित करते हैं। हम हर ऐसे मनुष्य की आवाज बनने की कोशिश कर रहे हैं, जो अपनी आवाज नहीं उठा सकते। सदमे से उबरने के लिए योग की भी ट्रेनिंग देते हैं। आखिर अहिंसा ही दुनिया का सबसे बड़ा धर्म है। अहिंसा का सिद्धांत खुशी पाने का सर्वश्रेष्ठ तरीका है।”

“अब जब किसी स्पीच में लोगों के बीच मैं अहिंसा के बारे में बात करती हूं तो पाती हूं कि यहां अमेरिका में बहुत लोगों को अहिंसा के बारे में जानकारी ही नहीं है। मैं उन्हें अपनी कहानी सुनाती हूं और बताती हंू कि संतुलित, सार्थक और सच्चे अर्थों में सफल जीवन जीने का सबसे अच्छा मार्ग अहिंसा का है। कई लोग मेरे पास यह जानने के लिए आते हैं कि मैं क्या करती हूं और वे कैसे अहिंसा के इस मार्ग को सीख सकते हैं।”

अहिंसा पर बढ़ने के कई मार्ग- किताब, पियानो और कैमरा
सिद्धाली श्री ने ’31 डेज टू ए चेंज्ड यू’ नाम की किताब लिखी है। इस किताब में उन्होंने व्यक्तित्व परिवर्तन के व्यावहारिक तरीके बताए हंै। 2013 में उन्होंने अपना पहला पियानो एलबम सॉन्ग आॅफ अ साध्वी जारी किया। इसमें उन्होंने पियानो बजाया है। उन्होंने ‘स्टॉपिंग ट्रैफिक’ नाम की डॉक्यूमेंट्री फिल्म भी बनाई है। इस फिल्म को उन्होंने खुद भी शूट किया है।

Download Dainik Bhaskar App to read Latest Hindi News Today


US Army Nurse who became Jain Saint after seeing violence in Iraq war


US Army Nurse who became Jain Saint after seeing violence in Iraq war

Source: bhaskar international story

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *