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चुनाव 2023

5 साल में मोदी 47 बार नॉर्थ-ईस्ट पहुंचे:  8 में से 6 राज्यों में सरकार; BJP के लिए त्रिपुरा, नगालैंड और मेघालय क्यों है जरूरी

त्रिपुरा, नगालैंड और मेघालय विधानसभाओं के चुनावी नतीजे आज आएंगे। तीनों राज्यों में BJP सत्ता में है। इसे बचाए रखने के लिए पार्टी ने कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है। मेघालय में तो BJP ने चुनाव से ऐन पहले उसे सत्ता दिलाने वाली नेशनल पीपुल्स पार्टी यानी NPP से नाता तोड़ लिया। पार्टी मेघालय में सभी 60 सीटों पर चुनाव लड़ी, जबकि 2018 में उसे सिर्फ 2 सीट मिली थीं।

प्रधानमंत्री 2017 के बाद से 47 बार नार्थ-ईस्ट जा चुके हैं। चुनाव से पहले उन्होंने त्रिपुरा, नगालैंड और मेघालय में 3 बड़ी रैलियां कीं। नार्थ-ईस्ट के 8 राज्यों में हर 15 दिन में कोई न कोई केंद्रीय मंत्री जरूर पहुंचता है। केंद्र सरकार ने 2024-25 के लिए नार्थ ईस्ट का बजट 5892 करोड़ किया है। ये 2022-23 के मुकाबले 113% ज्यादा है।

सवाल यह है कि आखिर BJP नार्थ ईस्ट को इतना महत्व क्यों दे रही है? जबकि ये राज्य न हिंदी भाषी हैं और न हिन्दू बाहुल्य। आज भास्कर एक्सप्लेनर में इसी सवाल का जवाब 5 पॉइंट्स में जानते हैं…

1. हिंदी बेल्ट में पकड़ और हिंदुत्वादी पार्टी का नरेटिव बदलना चाहती है BJP

‘’बीजेपी हिन्दुत्वादी पार्टी है। उसका दबदबा देश के cow belt, यानी हिंदीभाषी राज्यों और हिंदू बाहुल्य इलाकों में है।’’ ये एक ऐसा नरेटिव है, जिसे BJP भीतरखाने तो बरकरार रखना चाहती है, लेकिन खुलेतौर पर इसे तोड़ना चाहती है।

नार्थ ईस्ट के राज्यों में चुनावी कामयाबी BJP के इस मिशन के लिए एकदम फिट बैठती है। यही वजह है कि BJP ने नगालैंड, त्रिपुरा और मेघालय में चुनाव जीतने के लिए जी जान लगा दी। फरवरी महीने में ही प्रधानमंत्री ने तीन बार इन राज्यों का दौरा किया। गृहमंत्री अमित शाह, BJP अध्यक्ष जेपी नड्डा समेत कई बड़े नेता लगातार यहां जाते रहे हैं।

अरुणाचल प्रदेश में 2003 के एक अपवाद को छोड़ दें, तो 2016 तक नार्थ ईस्ट के किसी राज्य में BJP सत्ता में नहीं रही। 2003 में कुछ महीनों के लिए गेगॉन्ग अपांग BJP में शामिल हो गए थे। तब वे अरुणाचल के CM थे।

इससे उलट आज यहां के 8 में से 6 राज्यों में BJP सत्ता में है। असम, त्रिपुरा, अरुणाचल और मणिपुर में BJP के मुख्यमंत्री हैं। नगालैंड और मेघालय में BJP सत्ताधारी गठबंधन में शामिल हैं।मिजोरम और सिक्किम में तनाव है, लेकिन इन दोनों राज्यों में सरकार चला रहीं पार्टियां BJP की अगुआई वाले नार्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस यानी NEDA में शामिल हैं।

पिछले दो लोकसभा चुनावों के नतीजों से भी जाहिर है कि नार्थ ईस्ट में एक केंद्रीय राजनीतिक शक्ति के रूप में BJP ने कांग्रेस की जगह ले ली है। 2014 में BJP को नार्थ ईस्ट की 32% सीटों पर कामयाबी मिली थी। 2019 में यह आंकड़ा 56% हो गया।

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2. संविधान संशोधन करने की जरूरत पड़ी तो इन राज्यों की अहम भूमिका

भारत में संविधान संशोधन के लिए तीन तरह के प्रोसेस हैं।

पहला : आर्टिकल 368 के तहत संसद के दोनों सदनों में साधारण बहुमत से। जैसे- नए राज्यों का गठन करना हो, या किसी राज्य की सीमाओं में बदलाव करना हो, या सांसदों की सैलरी बढ़ानी-घटानी हो।

दूसरा : दोनों सदनों में विशेष बहुमत से। यानी दोनों सदनों के कुल सदस्यों के 50% सदस्य और वोट देने वालों के दो तिहाई वोटों से। मूल अधिकारों में बदलाव जैसे संशोधन के लिए इसकी जरूरत पड़ती है।

तीसरा : विशेष बहुमत और आधे से ज्यादा राज्यों की विधानसभाओं के अनुमोदन से। जैसे राष्ट्रपति के चुनाव की शर्तों या प्रक्रिया में बदलाव, लोकसभा या राज्यसभा में राज्यों की सीटों में बदलाव, केंद्र और राज्यों में शक्तियों का बंटवारा, सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट की शक्तियों में बदलाव।

राजनीतिक रूप से यह तीसरा संवैधानिक संशोधन सबसे अहम है। इसके लिए संसद में विशेष बहुमत के साथ आधे से ज्यादा राज्यों का सपोर्ट चाहिए होता है। अभी देश में 28 राज्य हैं। इस तरह के संशोधन के लिए 15 राज्यों के सपोर्ट की जरूरत होगी। अभी16 राज्यों में BJP सरकार में है।

इसमें 6 राज्य नॉर्थ ईस्ट के हैं। अगर दो राज्य भी फिसले, तो समीकरण बदल जाएगा। इससे समझा जा सकता है कि छोटे होने के बावजूद नार्थ ईस्ट के 8 राज्य देश के बड़े राज्यों के बराबर ताकत रखते हैं।

3. हिंदी बेल्ट में कम सीटें आईं, तो इन राज्यों से भरपाई करना चाहेगी BJP

नार्थ ईस्ट के 8 राज्यों में कुल 25 लोकसभा सीटें हैं। BJP के पास इनमें से 14 सीटें हैं। अगले साल लोकसभा के चुनाव होने हैं। अगर हिंदी भाषी राज्यों में BJP की कुछ सीटें कम होती हैं, तो वह इन राज्यों में ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतकर उसकी भरपाई करना चाहेगी।

राज्यसभा की बात करें, तो यहां कुल 14 सीटें हैं। इनमें से 8 BJP के पास हैं। अगर विधानसभा चुनाव में BJP यहां बेहतर प्रदर्शन करती है, तो राज्यसभा में उसका आंकड़ा मजबूत होगा। इसका फायदा उसे राज्यसभा में किसी विधेयक को पारित कराने में मिलेगा।

4. कांग्रेस मुक्त भारत के राजनीतिक एजेंडा को पूरा करने के लिए जरूरी

2008 से 2013 तक नॉर्थ ईस्ट के आठ राज्यों में कांग्रेस और लोकल पार्टीज का एकतरफा कब्जा था। 2014 तक कांग्रेस की सरकार चार राज्यों में थी। उसके बाद कांग्रेस सिमटने लगी। वामदल की पकड़ भी कमजोर पड़ती गई।

2018 के मेघालय चुनाव में कांग्रेस 60 विधानसभा सीटों में से 21 पर जीती, लेकिन सरकार नहीं बना सकी। 20 सीटों वाली NPP यानी नेशनल पीपल्स पार्टी ने 2 सीटों वाली BJP, 8 सीटों वाली यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी यानी UDP और 2 सीटों वाली पीपल्स डेमोक्रेटिक फंड यानी PDF के साथ मिलकर सरकार बना ली। इस हेरफेर में BJP की बड़ी भूमिका थी।

आज असम, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश, त्रिपुरा, मेघालय और नगालैंड में BJP सरकार में है। कांग्रेस के पास यहां किसी भी राज्य में सरकार नहीं है। इससे कांग्रेस मुक्त भारत के राजनीतिक एजेंडे को बहुत बल मिला।

2018 तक पश्चिम बंगाल के बाद त्रिपुरा अकेला राज्य था, जहां लेफ्ट फ्रंट ने 25 साल तक राज किया। BJP ने इसे भी तोड़ दिया। पिछले विधानसभा चुनाव में बेहद ईमानदार छवि वाले माणिक सरकार नाकाम रहे। BJP को 60 में 35 सीट मिलीं। लेफ्ट फ्रंट 16 सीटों पर सिमट गया। त्रिपुरा उन राज्यों में शामिल हो गया, जहां से कांग्रेस का सफाया हो गया। कांग्रेस का वोट शेयर सिर्फ 1.79% रह गया।

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5. BJP पॉलिटिकल मैसेज देना चाहती है कि वह जोड़तोड़ वाली नहीं, लोगों से जुड़ी पार्टी है

सीनियर जर्नलिस्ट और पॉलिटिकल एक्सपर्ट राशिद किदवई बताते हैं, ‘विपक्ष BJP पर आरोप लगाता रहा है कि वह तोड़फोड़ करके और केंद्रीय एंजेंसियों के बल पर सरकार बनाती है, लेकिन नॉर्थ ईस्ट के राज्यों में BJP ने जमीनी स्तर पर बहुत मेहनत की है। लोग उसके साथ जुड़ रहे हैं। मैं पिछले कुछ दिनों से मेघालय में हूं। यहां लोगों से बात करने पर पता चलता है कि गैर-हिंदू वोटर्स भी BJP के साथ जुड़ रहे हैं।

दूसरी तरफ BJP यह भी मैसेज देना चाहती है वह सिर्फ हिंदीभाषी राज्यों की पार्टी नहीं है। देशभर में उसके कार्यकर्ता हैं। उसकी मौजूदगी है। लंबे समय से जिन राज्यों में वामदलों और कांग्रेस की सरकार थी, वहां अपनी सरकार बनाकर BJP एक बड़ा पॉलिटिकल मैसेज देना चाहती है कि उसे हर जगह लोग स्वीकार कर रहे हैं।’

आभार:- दैनिक भास्कर

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