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जीवनभर अशिक्षित रहीं, अब पोते-पोतियों के साथ 70 की उम्र में स्कूल जाती हैं ह्वांग



सियोल. ह्वांग वोल-गेम हर सुबह घर के तीन बच्चों के साथ पीले रंग की बस में स्कूल जाती हैं। इनमें से एक बच्चा तीसरी कक्षा में, दूसरा पांचवी और एक प्ले स्कूल में है। ह्वांग वोल खुद पहली कक्षा में हैं। उनकी स्कूलमेट उनके पोते-पोती हैं। 70 वर्षीय ह्वांग जीवनभर अशिक्षित रहीं और अब स्कूल जा रही हैं। बचपन के दिनों को याद करते हुए वे कहती हैं कि 60 साल पहले जब अपने दोस्तों को स्कूल जाते देखतींतो पेड़ के पीछे छिप जाती थींऔर रोने लगती थीं।

  1. ह्वांग कहती हैं- जब गांव के बच्चे स्कूल जाते थे तब वेघर के काम करती थीं, सूअरों को पालतीं और लकड़ी इकट्ठा करती थीं। साथ ही छोटे भाई-बहनों की देखभाल करती थीं।उनके 6 बच्चेहुए। सभी को उन्होंने हाईस्कूल और कॉलेज भेजा। उन्हें हमेशा इस बात का दुख रहा कि अन्य मांओं की तरह वे अपने बच्चों को कभी चिठ्ठी नहीं लिख पाईं।

  2. दक्षिण कोरिया में जन्मदर हाल के दशकों में काफी तेजी से गिरीहै। इसका सबसे ज्यादा प्रभाव ग्रामीण इलाकों में देखने को मिलता है। गांव में युवाओं की अपेक्षा बच्चे कम ही नजर आते हैं। युवा भी बड़ी संख्या में नौकरी की तालाश में शहरों की ओर पलायन कर जाते हैं।

  3. ह्वांग यहां के डैगू एलीमेंट्री स्कूल में अपने पोते-पोतियों के साथ पढ़ने जाती हैं। वे कहती हैं,‘‘गांव के अन्य स्कूलों की तरह यहां भी बच्चे काफी कम हो गए हैं। मेरा बेटा चाइ क्योंग-ड्योक (42) भी 1980 में इसी स्कूल में पढ़ता था, तब हर क्लास में 90 बच्चे पढ़ते थे। लेकिन, आज इनकी संख्या घटकर 22 हो गई है। चौथी और पांचवी के एक-एक छात्र हैं।’’

  4. डैगू एलीमेंट्री की प्रिंसिपल ली जु-यॉन्ग ने कहा, ‘‘हमने पूरे गांव में पहली क्लास में एडमिशन के लिए बच्चे कोढूंढा, लेकिन कोई नहीं मिला।’’ इसके बाद ली और स्थानीय लोगों ने 96 साल पुराने स्कूल को बचाने के लिए एक तरकीब निकाला। उन्होंने गांव के उन बुजुर्गों कोएडमिशन देना शुरू किया जो पढ़ना चाहते थे।

  5. ह्वांग और अन्य सात महिलाएं, जिनकी उम्र 56 से 80 साल के बीच है, इसके लिए आगे आईं। उन्होंने स्कूल में एडमिशन लिया। उनका कहना है कि अगले साल चार अन्य को भी वे एडमिशन लेने के लिए कहेंगी।

  6. जो युवा यहां रहना चाहते हैं, भविष्य में स्कूल को बचाने का जिम्मा उन पर ही होगा।ह्वांग के बेटे और 40 वर्षीय नोह सून-आह के पति बड़े शहर में एक ऑटो पार्ट्स फैक्ट्री की नौकरी छोड़कर अपने परिवार साथ यहां बस गए। वे पांच साल से अपने माता-पिता के कृषि व्यवसाय को संभालते हैं।

  7. स्थानीय शिक्षा विभाग ने भी स्कूल को बचाने की इस तरकीब की प्रशंसा की। ह्वांग पिछले महीने से स्कूल जा रही हैं। सभी बच्चों की तरह ह्वांग भी अपने स्कूल के पहले दिन रोईं थी, लेकिन यह खुशी के आंसू थे। उन्होंने कहा, ‘‘मुझे विश्वास नहीं हो रहा था कि सच में यह सब हो रहा है। बच्चों की तरह स्कूल बैग ले जाना मेरा हमेशा से सपना रहा है।’’

  8. कभी बच्चों से भरा रहने वालासमुद्र किनारे स्थित डैगू एलिमेंट्री स्कूल काकैंपस अब खाली पड़ा है। स्कूल के चारों ओर देवदार के वृक्ष, चेरी के फूल लगे हुए हैं। पहली कक्षा में पढ़ने वाली ह्वांग और दो अन्य दादी मां कठिन मेहनत करती हैं। वो लिखने-पढ़ने पर बेहद ध्यान देती हैं। अभी वह कोरियन अल्फाबेट के 14 व्यंजन और 10 स्वर सीखरही हैं।

  9. उनकी 24 वर्षीय शिक्षक जो यून-जेयॉन्ग उनसे एक-एक कर बोर्ड पर उनसे यह सब लिखवाती हैं। उनकी शिक्षक दादी मांओं के साथ गाना गाते हुए डांस भी करती हैं। ह्वांग ने कहा कि स्कूल में बहुत मजा आता है। उनका बेटा क्योंग-ड्योक कहता है, ‘‘मेरी मां ने जब से स्कूल जाना शुरू किया है, बेहद खुश रहती हैं। मुस्कुराहट शायद ही उनके चेहरे से जाती है।’’

  10. उनकी ही तरह 75 वर्षीय पार्क जोंग-सिम भी स्कूल जाती हैं। उनका कहना है, ‘‘अब मेरी स्मृति, आंख, जीभ और हाथ ठीक से काम नहीं करते। लेकिन, मरने से पहले मैं लिखना सीखना चाहती हूं।’’ उन्होंनेकहा, ‘‘पहले जब मैं सरकारी ऑफिस जाती थी, तब वहां फॉर्म फरने के लिए दिया जाता था। मैं वहां के लोगों सेयहीकहती कि मैं केवल अपना नाम लिखना जानती हूं।’’

  11. दशकों पहले, कोरिया के परिवारों में केवल बेटों को शिक्षित करने पर ध्यान दिया जाता था। लड़कियां केवल घर पर रहकर अपने छोटे भाई-बहनों की देखभाल करती थीं। उनके मां-पिता घर के बाहर काम करते थे।

  12. स्कूल की इस पहल से ग्रामीण खुश हैं। ह्वांग ने कहा, ‘‘मैं गांव के महिला समाज के अध्यक्ष का चुनाव लड़ने जा रही हूं। पहले जब लोग मुझे चुनाव के लिए कहते थे, तो मैं मना कर देती और कहती कि यह काम उनका है जो पढ़ना-लिखना जानते हैं।’’

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      South Korea School Enrolls Illiterate Grandmothers


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      Source: bhaskar international story

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