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दुनिया को हकीकत तब पता चली जब पत्रकार हर्निमैन ने लंदन के द डेली हेराल्ड में खबर छपवाई



13 अप्रैल 1919, आज से ठीक 100 साल पहले अंग्रेजी हुकूमत ने अमृतसर में बैसाखी मेले में जमा हजारों निहत्थे लोगों पर गोलियां चलवाई थी। इसमें एक हजार से ज्यादा भारतीय मारे गए थे। ब्रिटिश हुकूमत इस खबर को एक महीने तक दुनिया से छिपाती रही। इसके बाद पहली बार बॉम्बे क्रॉनिकल के संपादक बीजी हर्निमैन ने घटना की सही खबर और फोटो ब्रिटेन के द डेली हेराल्ड को दी। तब जाकर दुनिया को इस सच्चाई के बारे में पता चला। इससे नाराज ब्रिटिश हुकूमत ने हर्निमैन को दो साल और उन्हें खबर देने वाले चश्मदीद गोवर्धन दास को तीन साल की सजा सुनाई थी।

  1. आज वायसराय को मिले आधिकारिक पत्र में भारत में शुक्रवार और शनिवार को खतरनाक दंगों की सूचना दी गई है। यह गड़बड़ी कई आंदोलनकारियों के निर्वासन की वजह से हुई। अमृतसर में दो बैंक, एक टाउनहाल और एक गोदाम में आग लगा दी गई। इसमें पांच यूरोपियन मारे गए हैं। सेना ने भीड़ पर फायर किया। इसमें 9 लोग मारे गए और 21 जख्मी हुए। लाहौर के कसूर में भी 5 मौतें हुई हैं।

  2. शिमला से गवर्नर जनरल ऑफ इंडिया के अनुसार क्रांतिकारी व्यवधान के बाद लाहौर, अमृतसर और अहमदाबाद में आज फिर से कानून व्यवस्था बहाल हो गई है। वहीं 25 मई 1919 यानी घटना के लगभग एक माह बाद वॉशिंगटन हेराल्ड ने भी इस घटना को एक दंगा बताया। इस अखबार ने लिखा- आयरलैंड, भारत और मिस्र, शेर (ब्रिटेन) के पंजों में चुभे हुए कांटे की तरह हैं।

  3. पंजाब में चल रहे दंगों को रोकने के लिए आज हवाई जहाजों का इस्तेमाल किया गया। भीड़ ने पैसेंजर ट्रेन पर हमला कर दिया और गुजरांवाला में रेल की पटरियों को उखाड़ दिया। लाहौर से हवाई जहाज भेजा गया और भीड़ पर बम गिराया गया। मशीनगन से भी फायरिंग की गई। इस वजह से दिल्ली और लाहौर में तनाव है। लाहौर और अमृतसर में मार्शल लॉ लगा दिया गया है।

  4. द इंडिया ऑफिस से भारत में चल रहे तनाव पर खबर आई है कि एक जनसमूह ने जनसभा की मनाही के बावजूद सभा की। इसके बाद हुई गोलीबारी में 100 से ज्यादा लोग मारे गए और हताहत हुए। 13 अप्रैल को पंजाब में खजाने पर हमला हुआ और इसमें एक ब्रिटिश सैनिक मारा गया। दिल्ली में मुस्लिमों की भीड़ दुकान खोलने के लिए हस्तक्षेप कर रही थी। पुलिस ने फायरिंग कर इन्हें खदेड़ा।

  5. आयरलैंड मूल के जर्नलिस्ट बेंजामिन गाय हर्निमैन ने इस घटना पर खबरें तो लिखी ही जेल में रहते हुए 1920 में ‘अमृतसर एंड अावर ड्यूटी टू इंडिया’ नाम से एक किताब भी लिखी। इनमें उन्होंने जनरल डायर को अत्याचारी बताया। उन्होंने नरसंहार की तुलना कांगो अत्याचार, फ्रांस और बेल्जियम में जर्मनी द्वारा किए जा गए नरसंहार से की और इसे ब्रिटिश शासन पर एक अमिट धब्बा कहा था। उन्होंने लिखा-‘इंग्लैंड के लोगों को शायद ही कभी इस बात का विश्वास दिलाया जा सकेगा कि उनके एक जनरल ने निहत्थे लोगों पर बिना चेतावनी दिए गोली चलवाई। वो लोगों को तब तक मरते देखता रहा, जब तक कि उसके सैनिकों की सारी गोलियां खत्म नहीं हो गई। अधमरे पड़े लोगों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया।’ एक अन्य रिपोर्ट में उन्होंने लिखा- यह नरसंहार उसी दिन खत्म नहीं हुआ। छह हफ्ते तक मार्शल लॉ लागू रहा। इस दौरान लोगों पर डंडे बरसाए जाते रहे। उन्हें बेवजह जेलों में ठूंसा जाता रहा। गुजरांवाला में लोगों पर बम फेंके गए और गोलियां चलाई गईं। लोगों को नंगे बदन घुटने के बल बिठाकर मारा गया। इस घटना के सबूत भी फोटो के रूप में मौजूद हैं। उन्होंने ब्रिटेन के लोगों को अपनी जिम्मेदारी और कर्तव्य की याद दिलाते हुए लिखा- हंटर कमेटी की रिपोर्ट में जो खुलासे हुए हैं, उसके बाद ब्रिटिश सरकार बगैर कोई कार्रवाई किए दुनिया में अपनी साख नहीं बचा पाएगी।

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      Journalist got 2 years jail for reporting of Jalianwala case

      Source: bhaskar international story

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