वीडियो गेम की लत मानी जा सकती है बीमारी, डब्ल्यूएचओ में जल्द होगी वोटिंग
जेनेवा. वीडियो गेम की लत को जल्द ही आधिकारिक तौर पर बीमारी माना जा सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) इस मुद्दे पर जल्द वोटिंग करवा सकता है। गेम की लत की वजह से बच्चे और युवा मनोवैज्ञानिक परेशानी का सामना करते हैं। एमआरआई स्कैन में ये जानकारी सामने आई है कि वीडियो गेम की लत के कारण युवा तनाव और अवसाद में रहते हैं। यह नशीली दवाओं और शराब जैसी ही लत है।
डब्ल्यूएचओ ने पिछले साल 11वें इंटरनेशनल क्लासिफिकेशन ऑफ डिसीज कार्यक्रम में वीडियो गेम की लत को एक बीमारी का दर्जा देने का निर्णय किया था। इसकी लत वाले लोग रोज के कामकाज से ज्यादा गेम को महत्व देते हैं। अगर इसकी वजह से उनके जीवन में बुरा असर पड़ता है, तब उसे ‘गेमिंग डिसऑर्डर’ यानी बीमारी का शिकार माना जा सकता है।
वीडियो गेम की लत को बीमारी माने जाने के फैसले की गैर-लाभकारी इंटरनेशनल गेम डेवलपर्स एसोसिएशन ने निंदा की। एसोसिएशन का कहना है कि वह इस निर्णय का विरोध करेगा। माइक्रोसॉफ्ट जैसी गेमिंग कंपनियों का कहना है कि वे इस पर काम कर रही हैंकि बच्चे कितनी देर गेम खेलें औरइस पर उनके माता-पिता का नियंत्रण हो।
डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के मुताबिक, अगर आप अपने जीवन के बाकी काम निपटाते हुए गेम खेलने का वक्त निकाल पाते हैं तो उन लोगों के लिए ये बीमारी नहीं है। चिकित्सकों का मानना है कि बच्चे बीमार इसलिए हैं, क्योंकि वे स्कूल सेवापस आने के बाद सारा काम छोड़कर सिर्फ मोबाइल गेम खेलते हैं।
यह एक ऐसी बीमारी है जिसमें मनोवैज्ञानिक और मनोचिकित्सक दोनों की मदद लेनी पड़ती है। कई जानकार मानते हैं कि दोनों एक समय पर इलाज करें तो मरीज में फर्क जल्दी देखने को मिलता है। जबकि कुछ मनोवैज्ञानिकों के मुताबिक, कई मामले में साइको थैरेपी ही कारगर होती है।
डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, 10 में से एक मरीज को अस्पताल में रहकर इस बीमारी के इलाज की जरूरत पड़ जाती है। 6 से 8 हफ्तों में सामान्यत: गेमिंग एडिक्शन की लत छूट सकती है। भारत में करीब 60 लाख मोबाइल हैंडसेट हर महीने बिकते हैं।
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Source: bhaskar international story