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600 किमी लंबी कबूतरों की मैकआर्थर रेस, लोगों का शौक 90% पक्षियों की ले लेता है जान



मनीला. फिलीपींस में कबूतरों की रेस की मैकआर्थर प्रतियोगिता होती है।600 किलोमीटर की यह रेस जानलेवा है। लंबा समुद्री मार्ग, गर्मी, शिकारी पक्षियों और अपहरणकर्ता से कबूतरों की जान का खतरा भी इसमें बना रहता है। रेस के आयोजक नेलसन चुआ बताते हैं कि रेस फिलीपींस का चार्म है। यह तेजी से बाकी एशियाई देशों में भी बढ़ रही है। इनमें भारत, चीन और ताइवान प्रमुख हैं।

रेस लेइटे द्वीप से मैकआर्थर शहर तक होती है। केवल 10% कबूतर ही पूरा करते हैं। 50 से 70% जालों में फंस जाते हैं या शिकारियों द्वारा मारे जाते हैं। रेस को पसंद करने वालोंआज फिलीपींस मेंहजारों सदस्यों वाले 300 क्लब हैं।

9.8 करोड़ रुपए तक कबूतर की कीमत
देश की सबसे लंबी इस रेस का समय कबूतरों और उन्हें पालने वालों के लिए भी टेंशन से भरा होता है। कबूतर पालने वाले जाइमे लिन कहते हैं कि यहां यूरोप और अमेरिका की तुलना में ज्यादा शिकारी हैं।वे कहते हैं,फिलीपींस में लोग कबूतरों को लोग गोली मार देते हैं।कबूतरों की बोली डॉलर में लगती है, इसलिए उन्हें पहाड़ों पर जाललगाकर फंसाया जाता है। इनकाअपहरण भी आम बात है। फिर कम दाम में कबूतर शौकीनों को बेच दिया जाता है। मार्च में एकचीनी खरीदार ने नीलामी में बेल्जियम के सर्वश्रेष्ठ लंबी दूरी वाले रेसिंग कबूतर को रिकॉर्ड 9.8 करोड़ रुपए में खरीदा था।

बेल्जियम कबूतरों की रेस का गढ़
कबूतरों की रेस की शुरुआत बेल्जियम से मानी जाती है। ऐसी पहली रेस 1818 में हुई थी। अब भी बेल्जियम इस रेस के शौकीनों का गढ़ है। एक हजार सदस्यों वाले मेट्रो मनीला फैन्सियर्स क्लब के अधिकारीएडी नोबेल बताते हैं कि कुछ लोग इसे जुआ के तौर पर भी देखते हैं। लेकिन लोगों में इस बात को लेकर उत्साह रहता है कि आखिर कबूतर अपना घर वापस आकर कैसे खोज लेते हैं।

कबूतरों की याददाश्त पर वैज्ञानिक थ्योरी
कबूतरों के रास्तों को याद रखने पर विज्ञान की थ्योरी कहती है-कबूतर धरती के मेग्नेटिक फील्ड को चुनते हैं। उनमें गंध पहचानने का गुण भी होता है। वहीं एक दूसरी थ्योरी कहती है कि पक्षी अल्ट्रा-लो फ्रीक्वेंसी वालेसाउंड वेब्सका इस्तेमाल कर मैपिंग करते हैं। मैकआर्थर रेस में उनकी इसी खूबी की परीक्षा होती है। रेस के पूरा होने में कम से कम 10 घंटे लगते ही हैं, जो कबूतर वापस लौटने में सफल होता है, वह सीधे अपने घर जाता है। फिर उसका मालिक उसके पैरों में बंधा कोड आयोजनकर्ताओं को देता है। इसके बाद ट्रॉफी दी जाती है

ट्रॉफी के लिए कबूतरों ली जा रही जान
पशु पक्षियों के लिए काम करने वाले मनीला के संगठन, ‘पीपुल फॉर द एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनीमल्स’ की ऐश्ले फ्रूनोकहती हैं, रेस में 90% पक्षियों की मौत के जिम्मेदार आयोजक हैं। जो तीन-तीन समुद्र पार करने वाली कठिन रेस करवातेहैं। यह जानलेवा रेस है। इसमें खेल जैसी कोई बात नहीं। लोग सिर्फ ट्रॉफी के लिए कबूतरों की जान लेते हैं।

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रेस में भाग लेने वाले कबूतर के साथ आयोजक।


नेट में फंसे कबूतर को निकालता क्लब का सदस्य।


उड़ान के पहले कबूतर के पंखों पर मार्किंग करते आयोजक।

Source: bhaskar international story

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