तुवालु में तेज धूप से त्वचा झुलस रही, सनस्क्रीन लोशन लेने विमान से फिजी जाना पड़ता है
फुनाफुटी. प्रशांत महासागर में स्थित तुवालु दुनिया का चौथा सबसे छोटा देश है। ग्लोबल वॉर्मिंग के चलते यहां तापमान बढ़ रहा है। तेज धूप के चलते लोगों को त्वचा झुलसने की समस्या हो रही है। बड़ी बात यह कि पूरे देश में कहीं भी सनस्क्रीन लोशन नहीं मिलता। यह लोशन खरीदने के लिएफिजी तक विमान से जाना होगा। तुवालु से फिजी जाने में ढाई घंटे लगते हैं।
तुवालु ऑस्ट्रेलिया और हवाई के बीच स्थित एक द्वीप है। संयुक्त राष्ट्र ने इसे विकासशील देश घोषित किया है। ग्लोबल वॉर्मिंग के चलते यहां समुद्र तल बढ़ने, तटों में कटाव, अकाल और साल दर साल तापमान बढ़ने का खतरा मंडरा रहा है।
राजधानी फुनाफुटी स्थित प्रिंसेस मार्गरेट हॉस्पिटल जलवायु परिवर्तन से जुड़ी बीमारियों के निदान में लगातार जुटा है। इन बीमारियों में बीते दस साल में काफी इजाफा हुआ है। स्थानीयों लोगोंका कहना है कि तापमान असहनीय होता जा रहा है। लोक स्वास्थ्य विभाग की कार्यकारी प्रमुख सूरिया यूसाला पॉफोलॉ कहती हैं कि देश में हीटस्ट्रोक और शरीर में पानी की कमी (डिहाइड्रेशन) होना आम बात है।
धूप से बचने के लिए लोग लंबे कपड़े पहनते हैं। धूप से बचाव का कारगर नुस्खा माना जाने वाला सनस्क्रीन लोशन देश की किसी दुकान पर नहीं मिलता। दुकानदारों का कहना है कि वे सनस्क्रीन रखते ही नहीं हैं। देश में अगर किसी को खासकर महिलाओं को सनस्क्रीन लाना हो तो उन्हें पड़ोसी देश फिजी जाना पड़ता है।
तेज धूप के चलते महिलाएं उम्रदराज दिखने की समस्या भी बता रही हैं। एक स्थानीय महिला ने बताया कि वह केवल 32 साल की है, लेकिन बुजुर्ग दिखने लगी है। वजह सनस्क्रीन का न मिलना ही है। इसके अलावा कोई ऐसी चीज नहीं है जिससे त्वचा की सुरक्षा की जा सके।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक- तुवालु में जरूरी दवाओं का न मिलना सामान्य बात है। एक अन्य संस्था के मुताबिक- तुवालु स्वास्थ्य सेवाओं के शीर्ष आयातकों में से एक है।
न्यूजीलैंड के प्रोफेसर टोनी रीडर कहते हैं- जिस देश में तेज धूप पड़ती हो, वहां सनस्क्रीन का न मिलना चौंकाता है। हालांकि, तुवालु में सनस्क्रीन इसलिए भी नहीं मिलता क्योंकि यह विदेशी उत्पाद होने के साथ महंगा है। लेकिन सरकार चाहे तो इस पर सब्सिडी दे सकती है।
2015 में ताइवानी त्वचा विशेषज्ञों ने तुवालु में लोगों की त्वचा पर शोध किया था। देश में इस तरह का कोई शोध पहली बार किया गया था। इसमें कहा गया कि त्वचा की बीमारियों को लेकर लोगों में कोई जानकारी नहीं है।
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Source: bhaskar international story